हमारा कारीगर और मजदूर अचछे पैसे नहीं कमाता ,
इस कारन पड़े लिखे लोग एलेक्ट्रिचियन या प्लम्बर नहीं बनना चाहते
उसे अछे पैसे इस लिए नहीं मिलते क्योँ की उन की संख्या बहुत जादा है
और काम कम .
आपस में क्म्पीटीशन इतना ज्यादा है , की पड़ते से भी कम रेट में
काम ले लेते हैं और बाद में शुरू हो जता है कमिशन लेना और देना।
बंडलों में 50 या 100 रूपये के कूपन डालना और और डलवाना मजबूरी
बन जाती है .
इस से नुक्सान तो कम मजदूरी देने वाले का होता है।
कूपन की कीमत , क्वालिटी गिरा कर या कीमत बड़ा कर ही निकलेगी .
माल दिखाया और जाएगा और दिया और .
आज कल सभी लोग, 250 रुपए की टिकेट , 150 रूपए का कोला
पिक्चर देखने में खर्च करते हैं।
मार्बल पथर महँगे से महँगा । इंसान सस्ते से सस्ता।
इन कारीगरों के साथ बार्गेन करते हैं , जब की पूरे परिवार की सेफटी
प्लम्बर और इलेक्ट्रीशयन पर रहती है और इन का काम अगले कई
सालों तक हमारे काम आता है। यह नहीं की शो खत्म पैसा हजम .
भाई जरा सोचना जरूर